प्यार की परिभाषा

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 जिंदगी एक ऐसे उलझन में है जहा  कुछ सोच पाना कठिन हो रहा है ।दिल और दिमाग एक दूसरे का साथ नही दे रहा ।दिमाग हकीकत का दर्पण दिखता है तो दिल ख्वाब की कल्पना से बहार आना नही चाहता।
          जिंदगी को उम्मीद ऐसा कोई मील जाए जो तुम्हारे ओर मेरे रिश्ते को बना सके इसकी खोज दिल लगातर करता रहता पर दिमाग जानता हैI की वो रास्ते कही पीछे छूट गए जो मुझको तुम तक ले जा सकते थे।
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           दिल और दिमाग की इस लड़ाई में दिल जीत जाता है।क्योंकि हम मशीन नही है जिसकी निश्चित प्रतिक्रिया हो जो केवल तर्क पर आधारित हो ।इंसान का अपना मनोवैज्ञानिक पहलू है।जो उसे भावनाओ के बन्धन में बांध कल्पना के अनन्त गहराई में ले जाता है।जहाँ केवल प्यार की सुंदरता ही नज़र आती है।हकीकत जिसे दिमाग मानता है वो कही पिछे छूट जाती है।
कभी प्यार आशा है तो कभी निराशा हर किसी ने दी इस प्यार को अपनी परिभाषा है।
जिस परिस्थितियों में व्यक्ति होता है वो जीवन मे प्यार को जैसे पता है। उसी प्रकार प्यार की परिभाषा देने लगता है।      
    "कभी आशाओं के बादल बन प्यार ख़ुशियों की बारिश करते है।
      तो कभी है हम खुशीओं की उम्मीदों में बारिश की एक बूंद के लये तरसते है"

(मरे डायरी के कुछ अंश है ये अगर आप पसन्द आये तो प्लस कमेन्ट करे ताकि मुझे आगे लिखने की प्रेरणा मिले)

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